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प्रतिद्वंद्वियों की कमजोरी के बीच अमेरिकी डॉलर अपना दबदबा बनाए हुए है

प्रतिद्वंद्वियों की कमजोरी के बीच अमेरिकी डॉलर अपना दबदबा बनाए हुए है

अमेरिकी डॉलर वैश्विक मुद्रा बाजारों में अपनी सर्वोच्चता लगातार बनाए हुए है और इसके कमजोर होने की भविष्यवाणियों को झुठला रहा है। यार्डेनी रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, 38 ट्रिलियन डॉलर के भारी राष्ट्रीय कर्ज और डॉलर पर निर्भरता घटाने के उद्देश्य से चल रही अंतरराष्ट्रीय पहलों के बावजूद यह अब भी अपूरणीय बना हुआ है। इस साल डॉलर यूरो के मुकाबले 12% गिरा है, लेकिन विश्लेषक इसे दीर्घकालिक गिरावट की शुरुआत नहीं, बल्कि एक सुधार (करेक्शन) मानते हैं।

इस लंबे समय से बनी मजबूती का कारण इसके प्रतिद्वंद्वियों की संरचनात्मक कमजोरियां हैं। यूरो, जो वैश्विक भंडार का केवल 20% हिस्सा है, विखंडन की समस्या से जूझ रहा है। यूरो क्षेत्र के 20 देशों ने एकीकृत राजकोषीय संघ बनाने से इनकार कर दिया है, जिससे यूरोप के पास अमेरिकी ट्रेज़री प्रतिभूतियों का कोई ठोस विकल्प नहीं है। जापानी येन मंदी के बेहद करीब बना हुआ है और उस पर प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की मुद्रा को कमजोर रखने की रणनीति का अतिरिक्त दबाव है। ब्रिटिश पाउंड अब भी ब्रेक्ज़िट के प्रभाव और जारी राजनीतिक उथल-पुथल से पूरी तरह उबर नहीं पाया है। वहीं, चीनी युआन केवल आंशिक रूप से परिवर्तनीय है और पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना की स्वतंत्रता की कमी के कारण सीमित बना हुआ है।

यार्डेनी इस स्थिति को एक “ब्यूटी कॉन्टेस्ट” बताते हैं, जिसमें विजेता सबसे आकर्षक नहीं, बल्कि सबसे कम खामियों वाला होता है। अमेरिकी डॉलर केंद्रीय बैंकों के कुल भंडार का लगभग 60% है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार व कॉरपोरेट उधारी के लिए अब भी प्रमुख मुद्रा बना हुआ है। 3% की मुद्रास्फीति, AAA रेटिंग में संभावित कटौती और ट्रंप की व्यापार नीतियों को लेकर अनिश्चितताओं जैसे जोखिमों के बावजूद, कैरी ट्रेड्स साल के अंत तक डॉलर की मजबूती के पक्ष में बने हुए हैं। डॉलर से दूरी बनाने के वैश्विक प्रयासों को अब तक सीमित सफलता मिली है, क्योंकि ग्रीनबैक से हटना अत्यधिक महंगा और व्यवधानकारी साबित हो सकता है।

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